Wednesday 27 January 2016

जाने कहाँ गए वो गीत ....

 आज बहुत दिनों बाद इस ब्लॉग पर कुछ लिखने जा रही हूँ,कंप्यूटर की समस्या और समय की कमी इन दोनों वजहों से पिछले कई दिनों से इस ब्लॉग पर कुछ नही लिख सकी । कुछ दिनों पूर्व रागों के परिचय से संबंधित एक पोस्ट पर आदरणीय तरुण जी ने पूछा था कि "राधिका जी आपको नही लगता कि आजकल शास्त्रीय रागों पर आधारित फिल्मी गाने बनना बंद हो गए हैं ."

अब जवाब यह हैं कि मुझे सिर्फ़ इतना ही नही लगता कि शास्त्रीय रागों पर आधारित गाने बनना बंद हो गए हैं ,बल्कि मुझे लगता हैं गीत बनना ही बंद हो गए हैं । संगीत किसे कहेंगे हम ,वह जो जिसमें मधुर स्वर ,उपयुक्त लय ,सुंदर बोल हो और उसे जिसे उसी सुन्दरता से गाया गया हो । आज जो गाने बन रहे हैं उसमे से १० भी नही ४ या ५ % ही ऐसे हैं जिन्हें संगीत कि विधा में रखा जा सकता हैं .बाकि जो हैं वो तो पता नही संगीत के नाम पर क्या हैं ?

आज से दो तिन दशक पहले फिल्मी गीत शास्त्रीय संगीत पर आधारित ही नही होते थे बल्कि बहुत सुंदर रचे हुए ,शब्दों और स्वरों से सजाये हुए ,और गाये हुए होते थे , पर आज न शब्दों का पता हैं न सुर का ,गाना तो हर कोई गा रहा हैं ,क्या करना हैं ,एक सुर पकड़ के कविता पाठ ही तो करना हैं ।

संगीत कला जिसे दैवीय, परालौकिक कहा गया हैं ,उसे सिखने में ,समझने में बरसो लग जातेहैं ,कंठ से निकलने वाली आवाज़, हर एक सुर पर गायक को बरसो मेहनत करनी पड़ती हैं ,गले की कितनी बारीकियों पर ध्यान देना पड़ता हैं ,तब कही जाकर एक मधुर गीत निकलता हैं ।

इसी तरह कविता मात्र शब्दों की जोड़तोड़ नही हैं ,नही मेरे मत से शब्दों का प्रवाह मात्र हैं ,कविता भावो और विचारो की सरिता हैं जो शब्दों के किनारों में बंध कर कल्पनारूपी हवा के झोकों में धीमे धीमे झूलती हुई ह्रदय के गीतों को गुंजरित करती हुई बहती चली जाती हैं ।

सृष्टि में सर्वत्र एक लय हैं ,लय जो जीवन को गति देती हैं, उल्लास देती हैं । पर जब यही लय सुर और शब्द पर इतनी हावी हो जाती हैं की सुर और शब्द उसके सामने बौने नज़र आते हैं और वह विशालकाय दानवी सी तो संगीत संगीत नही लगता ।

आजकल यही सब हो रहा हैं । मैं नही कहती की हर गीत शास्त्रीय रागों में निबद्ध ही होना चाहिए ,ऐसा हुआ तो इससे अच्छी कोई बात नही हो सकती ,पर कम से कम संगीत,संगीत तो लगना चाहिए ,चाहे वह किसी भी रागों में निबद्ध हो या लोक संगीत की धुनों पर थिरकता हुआ हो ।

वस्तुत: आज संगीत कहीं खो गया हैं , जो भी असांगितिक संगीत हैं ,वह श्रेष्ट संगीत के नाम पर इतना बिक रहा हैं की नई पीढी , युवा वर्ग ,बच्चे यह समझ ही नही पा रहे की संगीत क्या हैं ?शास्त्रीय संगीत को आ ऊ कहके उसका मजाक बनाया जा रहा हैं ,उसे सिखने समझने वालो को पुरा जन्म उस पर कुर्बान करने के बाद भी बहुत कम नाम ,धन और प्रशंसा मिलती हैं ,दूसरी तरफ़ चलती फिरती धुनें बनाने वाले और उसे गाने वाले रातों रात महान गायक संगीतज्ञों की सूचीं में आ जाते हैं । लगता हैं की संगीत कहीं खो गया हैं ।

क्या ये देश द्रोह नहीं

मुंबई का वाशी इलाका ,शाम के सात का समय.कंधे पर गिटार लिए बड़े उदास मन से मैं घर को लौट रही थी ,ऑटो में बैठ कर घर कब पहुंची कुछ पता नहीं ,पुरे समय मेरा दिमाग सोचता रहा ,कभी सारी बातो के लिए मन में दुःख हो रहा था,कभी अपने आप पर गुस्सा आ रहा था .हुआ कुछ यह था की मेरे यहाँ आने वाले शिष्यों के लिए मुझे गिटार खरीदना था ,मेरे घर से वाशी की यह दुकान सबसे पास पड़ती हैं ,सोचा यही से गिटार खरीद लेती हूँ.दुकानदार से पूछा भाई हवाइयन गिटार हैं ,उसने मुझे कुछ ऐसी नज़र से देखा जैसे मैंने कोई पुरातत्व संग्रहालय में रखी जाने वाली सातसौ साल पुरानी चीज़ मांगली हो .बोला अरे दीदी आप क्या बात कर रही हो ,आजकल ये गिटार बिकती ही कहाँ  हैं ,कोई नहीं बजाता,ये सब तो पुरानी बातें हैं ,मेरे यहाँ वेस्टर्न गिटार इलेक्ट्रोनिक गिटार सब हैं आप वह ले जाईये ,मैंने कहाँ नहीं कोई बात नहीं मुझे हवाइयन  गिटार ही चाहिए .बोला आप उसे बजा कर क्या करोगी ,बेकार हैं ,कोई नहीं सुनता ,सब तो यही म्यूजिक सुनते हैं .आप क्यों सीखना चाहती हो ?कुछ नहीं मिलेगा इंडियन म्यूजिक बजाकर सब यही वेस्टर्न ही पसंद करते हैं .

उस समय न जाने क्यों उससे कुछ बात करने का मन नहीं हुआ .लेकिन बाद में मुझे स्वयं पर ही बहुत गुस्सा आया,दुसरे दिन फिर गिटार खरीदने मैं उसी दुकान पर गयी ,स्वभावत: उस दुकानदार ने वही सब बातें बताई ,पर फिर मैंने उसे अपना परिचय दिया ,उसे बताया की मैं अपने लिए नहीं अपने शिष्यों के लिए गिटार खरीद रही हूँ ,और अगर उसे भारतीय संगीत और उससे जुडी परम्परा ,लोकप्रियता और महानता के बारे में कुछ नहीं पता तो उसे ऐसी बातें करके भारतीय संगीत का अपमान नहीं करना चाहिए .

कल मेरे एक शिष्य के साथ फिर कुछ ऐसा ही हुआ ,वह गया यहाँ के एक बड़े से मॉल में गिटार खरीदने ,गिटार चेक करने के लिए उसने उसे इंडियन स्टाइल से बजाना शुरू किया ,लेकिन दूकानदार ने कहाँ अरे ये तो गलत तरीका हैं ,यह तो सितार बजाने का तरीका हैं ,गिटार तो कभी भी ऐसे नहीं बजता ,अपना टाइम वेस्ट मत करो,वेस्टर्न म्यूजिक सीखो ,सब वही सुनते हैं .ऐसे म्यूजिक को कोई नहीं सुनता ,जबसे ये बात मेरे शिष्य ने मुझे बताई हैं ,तबसे बड़ा गुस्सा आ रहा हैं .

आप जानते हैं मेरे पास हर दिन कम से कम तीन से चार फोन आते हैं ,हर बार वही प्रश्न ,क्या आप वेस्टर्न गिटार सिखाती हैं ?हमें सीखनी हैं .हर बार जब मैं यह पूछती हूँ की आपको वेस्टर्न गिटार ही क्यों सीखनी हैं तो उत्तर मिलता हैं क्योकि सब वही बजाते हैं .

मुद्दा यह नहीं हैं की लोग वेस्टर्न म्यूजिक सीख रहे हैं,उससे भी बढ़कर मुद्दे की बात यह हैं की वो क्यों सीख रहे हैं ?क्या भारतीय संगीत इतना बेकार रहा हैं ,या उसे सीखना वाकई बोरिंग और अत्यंत कठिन हैं ,या उसे सिखने में वाकई इतना ज्यादा समय देना पड़ता हैं जो आजकल देना संभव नहीं हैं .

सच यह हैं की नयी पीढ़ी को भारतीय संगीत क्या हैं यह पता ही नहीं हैं ,बॉलीवुड सिनेमा में पहले जो गाने रागों पर आधारित होते थे,अब गानों में हीरो वेस्टर्न गिटार हाथ में ले कोई इंडियन गाना गाते हैं .मॉल्स में जहाँ तह वेस्टर्न म्यूजिक बजता हैं ,वही दुकानों में बिकता हैं .पहले प्लेनेटेम में जहाँ भारतीय संगीत का विभाग सुंदर केसेट्स और सिड़ीस से भरा रहता था ,वहाँ अब एक दो चुनिंदा सिड़ीस ही नज़र आती हैं .

हम भारतीय हैं ,बड़े आनंद से भारत में रहते हैं ,देश की चुनाव प्रक्रिया में वोट दे दिया तो दिया.कभी देश की दुर्वय्वस्था पर बड़ा सा लेक्चर झाड देते हैं .लेकिन अपने देश की संस्कृति की रक्षा के लिए हम कितने सजग हैं .हम सुबह उठते हैं ,काम पर जाते हैं खाते पीते सो जाते हैं.जो लोग भारतीय संगीत की हानी परोक्ष अपरोक्ष रूप से कर रहे हैं ,उनका विरोध क्या हम कर रहे हैं ?जो लोग भारतीय संगीत के बारे में ऐसी भ्रांतियां फैला रहे हैं ,जो लोग मिडिया और अन्य संचार माध्यमो के द्वारा संभव होकर भी भारतीय संगीत के लिए कुछ नहीं करके वेस्टर्न की धुन बजा बजा कर हमारे युवाओ को भ्रमित कर रहे हैं उनके बारे में हमने क्या सोचा हैं ?क्या ये देश द्रोह नहीं हैं ?हमारे संगीत मुनिजनो ने संगीत के प्रचार प्रसार के लिए अपनी सारी उम्र लगा दी और हम ?

अगर आपको लगता हैं की यह गलत हैं ,आप भारतीय संगीत को पसंद करते हैं ,जाने अनजाने गुनगुनाते हैं ,फिर वह लोक संगीत हो या उपशास्त्रीय ,ग़ज़ल भजन,गीत ,शास्त्रीय कुछ भी ,तो आप वीणापाणी की भारतीय संगीत के प्रचार की  मुहीम का हिस्सा बन सकते हैं.अपना प्रिय संगीत ,आपके आसपास कितने लोग भारतीय संगीत सीख रहे हैं ,इसकी जानकारी ,जो सीख नहीं रहे वो क्यों नहीं सीख रहे इसकी जानकारी ,अगर आपका बच्चा स्कूल में सीख रहा हैं तो वह कौनसा संगीत सीख रहा हैं ,आपके आसपास कौन कौनसी संगीत संस्थाएं संगीत शिक्षा दे रही हैं ,और वह किस तरीके से और क्या सीख रही हैं ,यह सब बातें मुझे लिखकर भेज सकते हैं ,आपके नाम के साथ वह में अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करुँगी ,वीणापाणी का एक उद्देश्य हैं भारतीय संगीत का प्रचार .मुझे उसके लिए हर भारतीय की मदद चाहिए .एक भारतीय होने के नाते मैं भारतीय संगीत को नयी पीढ़ी से दूर होते हुए नहीं देख सकती .भरोसा हैं की आप सब भी नहीं देख सकते .इसलिए मुझे अपने विचार लिख भेजिए .अपने बच्चो को भारतीय संगीत के बारे में जानकारी दे.अगर आप पत्रकार हैं तो कृपया अपने लेख का विषय इस समस्या को बनाये .आप सभी श्रेष्ट ब्लोगर हैं कृपया ब्लॉग जगत में इस गंभीर विषय में चिंतन करे इस पर लिखे . 

भारतीय संगीत साधिका 


डॉ. राधिका